पाप बढ़ते जा रहे हैं

पाप बढ़ते जा रहे हैं पुण्य घटते जा रहे हैं   जब से सुविधाएँ बढ़ी हैं सुख सिमटते जा रहे हैं   इसलिए ऋतुएँ ख़फ़ा हैं पेड़ कटते जा रहे हैं   साम्प्रदायिक दलदलों में लोग धँसते जा रहे हैं   घर नज़र आने लगा है पाँव थकते जा रहे हैं